केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान का इतिहास , Keoladeo National Park History in Hindi

केवलादेव पक्षी विहार का इतिहास, ( History of Keoladeo Bird Sanctuary in Hindi)

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान, भारत में स्थित एक लोकप्रिय पक्षी शरणस्थान (पक्षीशाला) है। इसे पहले भरतपुर पक्षी अभयारण्य ( Bird Sanctuary) के नाम से जाना जाता था। इस अभयारण्य में हजारों प्रकार के दुर्लभ और विलुप्त प्रजातियों के पक्षी (चिड़िया) पाई जाती हैं,
History of Keoladeo Bird Sanctuary in Hindi

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान, भारत में स्थित एक लोकप्रिय पक्षी शरणस्थान (पक्षीशाला) है। इसे पहले भरतपुर पक्षी अभयारण्य ( Bird Sanctuary) के नाम से जाना जाता था। इस अभयारण्य में हजारों प्रकार के दुर्लभ और विलुप्त प्रजातियों के पक्षी (चिड़िया) पाई जाती हैं, यह अन्य देशों से आने बाली प्रवासी पंछियों का एक शरणस्थान है, साइबेरिया से सारस पक्षी, जो सिर्फ सर्दियों के मौसम में प्रजनन करने यहां आते हैं। यहां पर पक्षियों की कुल 230 से अधिक प्रजातियों ने अपना बसेरा बनाया हुआ है। अब यह एक "प्रमुख चर्चित पर्यटन स्थल" और "पंछियों का केंद्र" बन गया है, तो आए जानते हैं Keoladeo National Park History in Hindi

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यह पंछी विहार ठंड के मोसम में दुर्लभ पक्षियों का 'दूसरा ठिकाना' बन जाती है। साईबेरियाई सारस, घोमरा, उत्तरी शाह चकवा, जलपक्षी, लालसर और बत्तख जैसे विलुप्तप्राय पंछियों की जाति और अनेकों प्राकार के पक्षिया यहाँ अपना बसेरा बनाती है

केवला देव राष्ट्रीय उद्यान इतिहास Keoladeo National Park History in Hindi


यह पक्षीविहार का निर्माण 250 साल पहले किया गया था और इसका नाम केवलादेव (शिव) मंदिर के नाम पर रखा गया था। पक्षी विहार के मध्य में शिव मंदिर स्थित है। यहां प्राकृतिक ढलान के कारण अक्सर बाढ़ का सामना करना पड़ता था। "भरतपुर के शासक महाराजा सूरजमल" (1726 से 1763) के मध्यकाल में यहां पर अजान बांध बनवाया, यह बांध दो नदियों के संगम गंभीरी और बाणगंगा “Gambhiri and Banganga Sangam” पर बनाया गया था।

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यह पक्षीविहार भरतपुर के महाराजाओं का पसंदीदा शिकारगाह था, जिसकी परंपरा 1850 साल पहले से चली आ रही थी। "तत्कालीन भारत के  ब्रिटिश वाइस-रा"य के सम्मान में वार्षिक "पक्षी शिकार" का आयोजन किया जाता था। 1938 में महज एक दिन में करीब 4,273 "पक्षियों का शिकार" किया गया था। जिसमे मॉलर्ड्स और टील्स “Mallards and Teals” जैसे पक्षी का अधिक मारा गया था। उस समय "भारत के गवर्नर" जनरल "लिनलिथगो" थे, जिन्होंने अपने सहयोगी "विक्टर होप" के साथ मिलकर उन्हें अपना शिकार बनाया था।

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पक्षी अभयारण्य (पंछी विहार) को 'राजस्थान वन अधिनियम 1953 के तहत आरक्षित वन की श्रेणी में शामिल किया गया था' इस पक्षी विहार में "अंतिम शिकार" कार्यक्रम 1964 में आयोजित किया गया था, भरतपुर के पूर्व राजा को 1972 तक अपने क्षेत्र में शिकार करने की अनुमति दी गई थी, 13 मार्च 1976 को इस क्षेत्र को पक्षी अभ्यारण का दर्जा दे दिया गया, तथा वर्ष 1981 के अक्टूबर महीने में वेटलैंड कन्वेंशन के अंतर्गत इस जगह को रामसर साइट का दर्जा दिया गया। 


इस पंछी अभयारण्य "Bird Sanctuary" को 10 मार्च 1982 को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया था, उसके बाद इस पक्षी अभयारण्य का नाम बदलकर केवलादेव घाना पक्षीविहार कर दिया गया है। 1985 में आयोजित "विश्व विरासत सम्मेलन" में इस राष्ट्रीय उद्यान को यूनेस्को की विश्व विरासत (UNESCO World Heritage Site) धरोहर स्थल घोषित किया गया था।

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इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किए जाने के बाद, सरकार ने 1982 में संरक्षित जंगल के अंदर खेती पर प्रतिबंध लगा दिया, और "पालतू जानवरों" के चरने और चारा लाने पर रोक लगा दी, इस प्रतिबंध के कारण स्थानीय निवासियों और सरकार के बीच कई हिंसक संघर्ष हुए, 


केवला देव राष्ट्रीय उद्यान पंछियों के लिए जोखिम केसे बना  (How Keolla Dev National Park is a risk to birds)


साल 2004 के अंत में, सरकार ने किसानों की मांगों ओर दबाव के आगे घुटने टेक दिए और केवला देव राष्ट्रीय उद्यान पक्षीविहार को भेजे जाने वाले पानी पर कटौती कर दी।, जिसके परिणामस्वरूप पार्क में "पानी की आपूर्ति" 15,000,000 क्यूबिक फीट से घटा कर केवल 510,000 क्यूबिक फीट रह गई है। यह कदम यहां के पर्यावरण और वातावरण के लिए काफी भयावह साबित हुआ। यहां की दलदली भूमि सूखी और बंजर हो गई, अधिकांश पक्षी उड़ गए और प्रजनन के लिए अन्य स्थानों पर चले गए। कई पक्षी प्रजातियां नई दिल्ली से लगभग 90 किमी दूर गंगा नदी पर स्थित उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर में चली गईं। पक्षियों के शिकार को पर्यावरण विशेषज्ञों ने निन्दा किया 

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