Chaurchan 2025 Kab Hai: भारत और नेपाल के मिथिला क्षेत्र मैं यह अनोखा त्योहार "चौरचन" मनाया जाता है। विवाहित महिलाओं के लिए यह एक महत्वपूर्ण व्रत है। चोरचन पूजा, को चौथ चंद और चारचन्ना पबनी इसके अलावा कुछ अन्य नामों से भी जाना जाता हैं। यह पर्व चंद्र देव और भगवान गणेश को समर्पित है। यहां हम आपको (मिथिला चौरचन पूजा कब है, पर्व, पावन, त्योहार, वर्त, कथा की पूरी जानकारी दे रहे हैं तो लेख में बने रहिए
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चोरचन त्योहार क्या है? (What is the Chorchan festival?)
Chaurchan 2025: भारतीय सनातन संस्कृति में प्रकृति को पूजा अर्चना करने का खास महत्व है, पूरे भारत वर्ष में कई तरह के एसे संस्कृति लोकपर्व मनाया जाता है जो सिर्फ़ प्रकृति को दर्शाता हैं उन्ही में से एक है, चौरचन जो मिथिला की संस्कृति में बहुत महत्पूर्ण हैं, मिथिला आपनी संस्कृति से ही प्रकृति पूजक रही है. यहां जल, अग्नि, वायु से लेकर सूर्य और चंद्रमा तक की पूजा लोकपर्व के रूप में किया जाता है।
यहां ढलते चंद्रमा और डूबते सूरज दोनों का सम्मान करने की परंपरा का पालन करना संभव है। यही नहीं जब पूरा देश भादों की चौथ पर कलंकित चंद्रमा को देखने से परहेज करती है, वही मिथिला भादों की चौथ पर न केवल कलंकित चंद्रमा को देखती है, बल्कि उसकी पूजा भी करती है। इसी दिन को "चौरचन पर्व" कहते हैं। लेख में बने रहे यहां हम आपको बिहार में चौरचन पूजा कब है? इसकी पूरी जानकारी दे रहे हैं।
चौरचन पर्व क्यों मनाया जाता है? (Why is Chaurchan Puja celebrated?)
मिथिला लोक पर्व के रूप में चौरचन मनाया जाता है। भादो मास की चौथ के दिन यह पर्व मनाया जाता आधे उगते चांद को जल अर्पित करते और पूजा अर्चना करते हैं। जैसे छठ पर्व के शुभ अवसर पर डूबते और उगते सूर्य को आर्ग दी जाती है। ठीक उसी तरह जब चौरचन (चौथचंद्र) आता है, तो मिथिलांचल में लोग कटे हुए चंद्रमा की पूजा करते हैं। याह के लोग इसे कलंकित चंद्रमा भी कहते है, यह पर्व भादो की चौथ के दिन मनाया जाता है? इशिलिए इस पर्व को चौथचंद्र भी कहते हैं, इस दिन चन्द्रमा को जल और नबेज अर्पित किया जाता हैं और अपने परिवार की मंगल कामना व कलंक-मुक्त होने की प्रार्थना करते है।
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चौरचन पर्व का धार्मिक महत्त्व (What is the religious significance of Chaurchan festival?)
चौरचन पर्व के पौराणिक कथाएं गौरी पुत्र गणेश से कथा संबंधित है. इसमें चांद को कलंकित होने का भी उल्लेख किया गया है।, पुराण में वर्णित घटना के अनुसार भगवान गणेश जी एक यात्रा के दौरान लड़खड़ाकर गिर पड़े। तो खुद को खूबसूरत समझने वाले चंद्रमा ने गणेश जी के ढुलमुल शरीर को देखकर हंस पड़े. यह गणेश जी अच्छा नहीं लगा तो उन्होंने चांद से कहा तुझे अपनी खूबसूरती पर गुमान है इसलिए मुझ पर हंस रही हो लेकिन आज मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि आज के दिन तुम कलंकित मानी जाओगी जो कोई भी इस दिन तुम्हें देखेगा उस पर भी चोरी और झूठ का कलंक लगेगा।
पौराणिक कथा के अनुसार, श्री कृष्ण भी इस श्राप के प्रभाव से बच नहीं पाए थे और उन पर दिव्य मणि चुराने का झूठा आरोप लगाया गया था। गणेश से श्रापित होकर कलंकित चांद, जिसके प्रभाव से श्रीकृष्ण तक नहीं बच पाए उन पर भी कलंक लगा, तो मनुष्य कैसे बचें।
यह भी पढ़ें - बाबु वीर कुंवर सिंह की जीवनी, जिन्होंने अंग्रेजों को छक्के छुड़ाए थे | babu veer kunwar singh history in hindiकहा जाता है कि मिथिला के राजा हेमांगद ठाकुर पर भी चोरी का कलंक लगा था, इसके लिए मिथिला के लोग उस दिन चांद को पूजा करना सुरु कर दिया जिसे चौरचन नाम से जाना जाता हैं इस दिन चांद को आर्ग दी जाती हैं और कलंक मुक्त होने की प्रार्थना की जाती हैं इसीलिए इस दिन को कलंकमुक्ति पर्व भी कहा जाता हैं।
मिथिला के राजा पर भी लगा था कलंक
वर्ष 1568 ई° में मिथिला के राज हेमांगद ठाकुर पर टैक्स चोरी करने का आरोफ लगा था किंवदंती के अनुसार, वह एक महात्मा राजा थे जो जनता और प्रजा पर कर (टैक्स) लगाना वसूली करना या उन पर अत्याचार करना नहीं चाहते थे लेकिन दिल्ली के बादशाह को तो कर समय पर ही चाहिए था
जब मिथिला के राजा टैक्स समय पर नहीं दिया तो दिल्ली के बादशाह ने हेमांगद ठाकुर को बुलाया क्योंकि वह चाहते थे कि कर समय पर अदा किया जाये। पूछताछ करने पर उसने पूजा करते समय टैक्स पर ध्यान नहीं रहने की बात कही तो बादशाह ने इस बात से इनकार कर दिया और कहा कि तुमने टैक्स चोरी की है, आरोप लगने के बाद उन्हें जेल भेज दिया गया।
कोन थे राजा हेमांगद ठाकुर
मिथिला राज्य के राजा हेमांगद ठाकुर एक खगोल शास्त्री भी थे उन्हें खगोलीय घटना पर काफी दिलचस्पी थी उन्होंने 16वीं शताब्दी में ही केवल बांस की खपच्चियों, तिनकों और जमीन का उपयोग करके आगामी 500 वर्षों के लिए सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की तारीखों की भविष्यवाणी की, साथ ही उस समय अवधि के लिए गणना की एक सीधी विधि भी विकसित कर लिया था। उन्होंने ये सारा विशिष्टताओं ग्रहण माला नामक पुस्तक में संकलित किया है, जिसे उन्होंने कैद में रहते हुए रचा था।
इस तरह मिटा कलंक
जब अपनी खगोल गणना की बात बादशाह को बताया तो बादशाह ने कहा लगता है मिथिला का राजा पागल हो गया है तो बादशाह खुद से ही राजा हेमानंद की खगोल गणना देखने की इच्छा जताई और कारावास पहुंच गए यहां जमीन पर अंकों और ग्रहों की चित्र और गुना भाग को देखकर बादशाह अचंभित रह गए और हेमांगद से कहा कि यह क्या बनाया है।
राजा हेमांगद ने कहा कि यहां पर मेरे लिए दूसरा और कोई काम नहीं था इसीलिए मैं ग्रहों की चाल की गणना कर रहा हूं अब तक मैं करीब 500 साल आगे तक की लगने वाली ग्रहणों की गणना पूरा कर चुका हूं
बादशाह ने तत्काल हेमांगद को ताम्रपत्र और कलम दवात की व्यवस्था करवाई और कहा कि आप इस ताम्रपत्र पर अगला लगने वाला ग्रह किस दिन और किस तारीख को लगेगा लिखिए यदि आपकी भविष्यवाणी सही और सटीक निकली तो आपकी सजा माफ हो जायेगी उन्होंने इस ताम्रपत्र पर चंद्र ग्रहण लगने की दिन तारीख और समय लिखा था।
उनके गणना के अनुसार चंद्रग्रहण सटीक समय पर लगा यह सब देख कर बादशाह ने केवल उनकी सजा ही माफ़ की, बल्कि आगे से उन्हें किसी भी प्रकार का कोई भी टैक्स देने से मुक्त कर दिया जब करमुक्त (टैक्स फ्री) राज लेकर राजा हेमांगद जब मिथिला पहुंचे तो रानी हेमलता ने कहा कि आज मिथिला का चांद कलंकमुक्त हो गये हैं, आज हम उनका पूजन और दर्शन करेंगे।
एसे शुरुआत हुआ चौरचन पर्व (Why Chaurchan Is Celebrated)
राजा हेमांगद जब टैक्स फ्री राज लेकर मिथिला पहुंचे तो रानी हेमलता उनका पूजन करने की ठानी और यह बात जन जन तक पहुंचा दी की आज मिथिला के चांद राजा हेमांगद कलंक मुक्त हो कर मिथिला लोटे है इसीलिए आज के दिन मिथिला क्षेत्र के लोग चांद की पूजा करेंगे।
ठीक उसी तरह जैसे बालगंगाधर तिलक ने 20वीं सदी में महाराष्ट्र में सार्वजनिक गणेश पूजा की शुरूआत की ठीक उसी तरह मिथिला की महारानी हेमलता ने 16वीं सदी में चांद पूजने की इस परंपरा को सार्वजनिक चौरचन पूजा के रूप में शुरुआत की. इसी तरह भादो की चौथी तिथि के दिन चांद पूजने की यह परंपरा शुरू हुई, जो आज एक लोकपर्व का रूप ले लिया।
चौरचन पर्व को लोकपर्व का दर्जा कैसे मिला
चंद्र पूजन को देख कर राजा हेमांगद ठाकुर ने इसे लोकपर्व का दर्जा देने के लिए मिथिला के पंडितों की बैठक बुलाई और उनसे राय विचार लिया फिर इस पर्व को लोकपर्व का दर्जा दे दिए तब से मिथिला क्षेत्र के लोगों ने चांद से कलंकमुक्ति की कामना करने के लिए चतुर्थी चन्द्र की पूजा करना प्रारम्भ किया
चौरचन पूजा करने की विधि
इस दिन लोग अपने सुविधानुसार शाम को आँगन या छत पर गाय के गोबर या चिकनी मिट्टी नीप कर उस पर चावल के पीठार यानी (गिला पिसा हुआ चावल) से अरिपन यानी (पारंपरिक रंगोली) से सजाया जाता है। ऐसा करने से यह मना जाता है कि पूजा स्थान सुध हो जाता है. फिर इस अरिपन पर मिठाई, पांच प्रकार के फल, खीर, दही, पूरी-पकवान का रोट, इत्यादि डाली या केला के पते पर रखा जाता हैं।
चौरचन कैसे किया जाता है?
घर के प्रमुख महिला या पुरुष इस दिन उपवास व्रत रखकर चांद निकलने का इंतजार करते हैं. फिर जब चांद उगने लगता है तो महिला चंद्रमा को दर्शन कराती है और अपने हाथ में डाली, दही और इत्यादि उठाकर भोग लगाते है। फिर घर के बड़े बुजनुक व्यक्ति रोट को तोड़ते हैं और यही पर बैठ कर प्रसाद ग्रहण करते है। उसके बाद आसपास के घरों में पकवान, प्रसाद भेजते हैं।
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चौरचन पूजा मंत्र (Chaurchan Puja Mantra)
चौरचन पवनी, बिहार के मिथिला क्षेत्र के प्रसिद्ध लोकपर्व में से एक हैं यह पर्व, प्रतिवर्ष गणेश चतुर्थी के दिन किया जाता है। चौरचन पर्व यह हर साल गणेश चतुर्थी के दिन मनाया जाता हैं।
सिंह: प्रसेनवमवधीत सिंहो जाम्बवताहत: सुकुमारक मारो दीपस्तेह्राषव स्यमन्तक: । - chaurchan puja Mantra
चौरचन के दिन शाम की पूजा के समय इन दोनों मंत्रों का जाप कम से कम तीन बार करना चाहिए। इन मंत्रों का जाप ही सही मायने में चार्चौन की पूजा करने का एकमात्र तरीका है।
चौरचन में पकवानों का खास महत्व है
इस दिन सुबह से ही पकवान बनाना शुरू हो जाता हैं लोग अपने सुविधा अनुसार तरह तरह के पकवान बनाते हैं, इस दिन दाल का या सदा पूरी (रोट), पांच प्रकार के फल, दही, खीर खाश होता है, और ऐसा माना जाता है की इस दिन सब को पकवान खाना अनिवार्य होता है. समाज का कोई भी व्यक्ति इससे वंचित न रह जाये इसलिए इस दिन पकवानों को बांटने की भी पौराणिक परंपरा है. लोग आसपास के घरों में भी पकवान भेजते हैं
चौरचन से समधित सवाल जवाब (FAQ)
प्रश्न: चौरचन पवनी कितने तारीख को है?
उत्तर: मैथिली पंचांग के अनुसार चौरचन पवनी इस बार 07 सितंबर 2024 को सनिबार के दिन हैं. इसी दिन देशभर में गणेश चतुर्थी का त्योहार भी मनाया जाता हैं।
प्रश्न: चौरचन पावन कि सुरूबात कैसे हुआ?
उत्तर: मिथिका के राजा हेमांगद जब कलंक मुक्त हों कर राज पहुंचे तो रानी हेमलता चंद्र पूजन की और जन जन तक पहुंचा दी इसी तरह चौरचन पावन की शुरुआत हुई है।
प्रश्न: चौरचन पर्व की क्या मान्यता है?
उत्तर: कलंक मुक्त होने की मान्यता है. इस पर्व की मान्यता पौराणिक कथाएं गौरी पुत्र गणेश कथा से जुड़ी है चंद्रमा एक बार गणेश जी पर हंसे थे तो गणेश ने क्रोधित होकर चांद को कलंकित रहोगी श्राप दे दिया था इसीलिए यह पर्व कलंक मुक्त होने के लिए मान्यता है