मैथिली शरण गुप्त का जीवन परिचय | Maithili Sharan Gupt Biography in Hindi

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"Maithili Sharan Gupt ka Jeevan Parichay in point and, Short,  जन्म, शिक्षा, प्रमुख कृतियाँ (भारत-भारती, साकेत, यशोधरा), साहित्यिक योगदान, उपाधियाँ"

maithili sharan gupt ka jeevan parichay

राष्ट्रीय कवि कहे जाने वाले मैथिली शरण गुप्त हिंदी की खड़ी बोली के प्रमुख कवि थे। उनकी रचनाओं में राष्ट्रभक्ति, सामाजिक चेतना और नारी सम्मान का अद्भुत समन्वय मिलता है।

स्वतंत्रता संग्राम के उथल-पुथल भरे दौर में हिंदी कविता को ऐसा स्वर मिला जिसने जन-जन के मन में राष्ट्रप्रेम और सामाजिक जागरण की चिंगारी भड़का दी। यह स्वर था मैथिली शरण गुप्त का, जिन्हें महात्मा गांधी ने प्रेमपूर्वक “राष्ट्रीय कवि” कहा। उनकी कविता में भारतीय सांस्कृतिक चेतना, नैतिक मूल्यों और नारी सम्मान की सतत धारा बहती है।

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प्रारंभिक जीवन व शिक्षा

3 अगस्त 1886 को झांसी जिले के चिरगांव में जन्मे गुप्त जी का पालन-पोषण धार्मिक और साहित्यिक वातावरण में हुआ। पिता सेठ रामचरण गुप्त और माता कशीबाई ने बाल्यावस्था से ही भाषा-संस्कृति का संस्कार दिया। औपचारिक शिक्षा सीमित रही, परंतु हिंदी, संस्कृत और अंग्रेज़ी के स्वाध्याय से उनकी वैचारिक दुनिया विस्तृत होती गई।

किशोरावस्था में ही काव्य-रचना आरंभ हो गई। शुरुआत ब्रजभाषा से हुई, पर महावीर प्रसाद द्विवेदी के मार्गदर्शन में उन्होंने खड़ी बोली को अपनाया—यहीं से हिंदी कविता का नया अध्याय प्रारंभ हुआ।

साहित्यिक यात्रा

गुप्त जी की रचनाएँ जनभाषा और जनमन से सीधे संवाद करती हैं। उन्होंने पौराणिक कथा-भूमि, इतिहास और समकालीन समाज को जोड़कर ऐसी काव्य-दृष्टि बनाई जिसमें राष्ट्रभक्ति, सामाजिक सुधार, नारी-उत्थान और धार्मिक-सांस्कृतिक समन्वय के स्वर समान तीव्रता से सुनाई देते हैं।

उनकी कविता मनोरंजन नहीं, बल्कि जन-जागरण का साधन बनी—इसीलिए भारत-भारती जैसे काव्य स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में प्रेरणा-ग्रंथ कहे गए।

प्रमुख कृतियाँ व महत्व

1) भारत-भारती (1912)

यह कृति गुप्त जी को जन-जन का कवि बनाती है। भारत के गौरवपूर्ण अतीत का स्मरण कराते हुए वे वर्तमान की चुनौतियों से परिचित कराते हैं और उज्ज्वल भविष्य का आशावाद जागृत करते हैं। राष्ट्रचेतना, स्वाभिमान और सामाजिक एकता के संदेश ने इसे स्वतंत्रता संग्राम में लोकप्रिय बनाया।

2) साकेत

रामायण की कथा-भूमि में गुप्त जी ने उर्मिला को केंद्र में रखा—एक ऐसा दृष्टिकोण जो पारंपरिक आख्यान में अलक्षित रहा। त्याग, धैर्य और नारी-मन की सूक्ष्म पीड़ा का यह मनोवैज्ञानिक चित्रण हिंदी काव्य में अभिनव जोड़ है।

3) पंचवटी

वनवास काल के प्रसंगों के माध्यम से आदर्श, धर्म और मानवीय संबंधों का संतुलित चित्रण। भाषा सरल, भाव गहन—जिससे सामान्य पाठक भी उससे आत्मीयता महसूस करता है।

4) यशोधरा

गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा की कथा नारी-हृदय के त्याग और विरह की मार्मिक अभिव्यक्ति है। यह कृति स्त्री दृष्टि को केंद्र में रखकर करुणा, धैर्य और आत्मबल का भाव संसार रचती है।

5) जयद्रथ वध

महाभारत के प्रसंग पर आधारित यह काव्य युद्ध, नीति और धर्म-संकट की जटिलताओं को उभारता है। इसमें कर्तव्य-निष्ठा और समयानुकूल निर्णय का गूढ़ विवेचन मिलता है।

अन्य कृतियाँ: द्वापर, सिद्धराज, विराट, विक्रमादित्य, अर्जुन-वाणी, गुरुकुल, अजय, विश्वरंग, भारतीय संस्कृति, काबा-कर्बला आदि।

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साहित्यिक शैली व विशेषताएँ

  • सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण भाषा: कठिन शब्दाभिसार से बचते हुए जनभाषा को प्रतिष्ठा।
  • खड़ी बोली का संवर्धन: हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने में निर्णायक भूमिका।
  • राष्ट्रभक्ति व सामाजिक चेतना: कविता के माध्यम से जन-जागरण, स्वाभिमान और एकता का संदेश।
  • पौराणिक कथाओं का आधुनिक पाठ: पारंपरिक पात्रों की मनोवैज्ञानिक व सामाजिक व्याख्या।
  • नारी सम्मान: उर्मिला, यशोधरा जैसे पात्रों के माध्यम से स्त्री-स्वर को मुखरता।

उपाधियाँ व सम्मान

  • महात्मा गांधी द्वारा “राष्ट्रीय कवि” का संबोधन।
  • भारत-भारती स्वतंत्रता आंदोलन के समय प्रेरणास्रोत।
  • राज्यसभा के मनोनीत सदस्य (1952)।
  • पद्म भूषण सम्मान।

समाज और राष्ट्र के प्रति योगदान

गुप्त जी केवल कवि नहीं, विचारक और समाज-सुधारक भी थे। उन्होंने कविता को जनहित का उपकरण बनाया।

  • नारी शिक्षा व सम्मान पर स्पष्ट, प्रगतिशील दृष्टि।
  • जातिवाद, कुरीतियों और अंधविश्वास का विरोध।
  • राष्ट्रप्रेम, आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक एकता का संदेश।
  • हिंदी को राष्ट्रीय चेतना की भाषा के रूप में लोकप्रिय बनाना।

व्यक्तिगत जीवन

किशोरावस्था में विवाह, सरल-सादा जीवन, परिवार और समाज के बीच रहते हुए साहित्य को ही धर्म मानना—ये गुप्त जी के व्यक्तित्व के प्रमुख आयाम हैं। धार्मिकता, नैतिकता और अनुशासन उनके जीवन-सिद्धांत रहे।

निधन

12 दिसंबर 1964 को राष्ट्रीय कवि मैथिली शरण गुप्त का देहावसान हुआ। उनकी रचनाएँ आज भी पाठकों को भारतीयता, एकता और मानवीय मूल्यों की प्रेरणा देती हैं।

संक्षिप्त टाइमलाइन

  • 1886: जन्म—चिरगांव, झांसी
  • किशोरावस्था: काव्य-रचना का आरंभ; ब्रजभाषा से खड़ी बोली की ओर
  • 1912: भारत-भारती का प्रकाशन
  • 1930–40 का दशक: जन-जागरण में काव्य का व्यापक प्रभाव
  • 1952: राज्यसभा में मनोनयन
  • पद्म भूषण: राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान
  • 1964: निधन

निष्कर्ष

मैथिली शरण गुप्त ने खड़ी बोली हिंदी को जन-जन की भाषा बनाकर राष्ट्र-निर्माण में कविता की निर्णायक भूमिका सिद्ध की। भारत-भारती, साकेत और यशोधरा जैसी कृतियाँ केवल साहित्यिक उपलब्धियाँ नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना के दिशासूचक स्तंभ हैं।

FAQs: अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

मैथिली शरण गुप्त को “राष्ट्रीय कवि” किसने कहा?

महात्मा गांधी ने उन्हें “राष्ट्रीय कवि” की उपाधि दी।

सबसे प्रसिद्ध कृति कौन-सी है?

भारत-भारती उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध और जन-चेतनात्मक कृति है।

जन्म कब और कहाँ हुआ?

3 अगस्त 1886 को चिरगांव, झांसी (उत्तर प्रदेश) में।

निधन कब हुआ?

12 दिसंबर 1964 को।

मुख्य विषय कौन-कौन से हैं?

राष्ट्रभक्ति, नारी सम्मान, सामाजिक सुधार, धर्म और संस्कृति।

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