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अप्सरा मेनका ओर विश्वामित्र की प्रेम कथा |
ऋषि विश्वामित्र की तपस्या
महर्षि विश्वामित्र वन में कठोर तपस्या में लीन बैठे हुए थे चेहरे पर एक तेज, शरीर में किसी प्रकार की हलचल नहीं, आसपास जानवर घूम रहे थे, चिड़िया चहक रही थी, लेकिन ऋषि के तप को भंग करने का साहस है किसी के पास नहीं था, किसी ने ऋषि विश्वामित्र की तपस्या की सूचना इंद्र लोक के राजा इंद्र को दे दी. अब इंद्र देव ऋषि विश्वामित्र के इस तपस्या को देखकर बेहद हैरान थे,हैरानी के साथ उन्हें यह भय भी सताने लगा एक ऐसा भय कि उनका अस्तित्व भी खत्म कर सकता था
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अपने कठोर तप से ऋषि विश्वामित्र एक नए संसार की साधना की कोशिश कर रहे थे और इंद्रदेव को यह चिंता थी यदि ऋषि विश्वामित्र इस में सफल हुए तो समस्त सृष्टि के देवता तो वे स्वयं ही बन जाएंगे लेकिन वे करे भी तो क्या करें, ऋषि तो अपनी तपस्या में इतने मग्न थे कि कोई भी उनकी तपस्या को भंग करने के लिए असमर्थ था
तपस्या भंग करने की साजिश
किंतु तब इंद्रदेव ने एक योजना बनाई योजना थी ऋषि विश्वामित्र की तपस्या को भंग करने की लेकिन यह कैसे हो, एक पौराणिक वर्णन के अनुसार देवराज इंद्र ने स्वर्ग की एक सुन्दर अप्सरा मेनका को सभा में आमंत्रित किया और उन्हें नारी शरीर धारण कर मृत्यु लोक में रहने का आदेश दिया. वहां जाकर अपने सौंदर्य से ऋषि विश्वामित्र को अपनी ओर आकर्षित कर उनकी तपस्या को भंग करने का आदेश दिया आज्ञानुसार अप्सरा मेनका जोकि इंद्रलोक की सभी अप्सराओं में सबसे सुंदर, सुरीली आवाज वाली एवं आकर्षण की मिसाल थी
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अप्सरा मेनका की जाल में फंस गए
वह ऋषि विश्वामित्र के सामने प्रकट हुई. ऋषि को तपस्या में लीन देख अप्सरा सोचने लगी कि वह ऐसा क्या करें कि ऋषि उनकी ओर आकर्षित हो जाए. वह एक अप्सरा थी लेकिन अब ऋषि विश्वामित्र के लिए उसने नारी का रूप धारण किया था, उसमें अब वह सभी गुण थे जो मृत्युलोक की एक नारी में होने चाहिए इसके अलावा सुंदरता की वह मूरत अप्सरा मेनका अपने आप में ही आकर्षण का केंद्र थी लेकिन ऋषि के तप को भंग करना आसान कार्य नहीं था परंतु देवराज इंद्र के आदेश का पालन करने इंद्रलोक में अपनी धाक जमाने का यह अवसर भी मेनका खोना नहीं चाहती थी इसलिए उसने ऋषि विश्वामित्र को अपनी और आकर्षित करने का हर संभव प्रयास किया वह कभी मौका पाकर ऋषि की आंखो का केंद्र बनती तो कभी मनसा पूर्वक हवा के झोंके के साथ अपने वस्त्र को उड़ने देती ताकि ऋषि विश्वामित्र की नजर उस पर पड़े लेकिन ऋषि विश्वामित्र का शरीर तप के परिणाम से कठोर हो चुका था उसमें किसी भी प्रकार की भावना नहीं थी परंतु अप्सरा उर्वशी के निरंतर प्रयासों से धीरे-धीरे ऋषि विश्वामित्र के शरीर में बदलाव आने लगा कामाग्नि की प्रतीक मेनका ने सामीप्य और संगति से महर्षि के शरीर में काम शक्ति के स्फुलिन स्फुरित होने लगे और एक दिन व समय आया जब ऋषि विश्वामित्र सृष्टि को बदलने के अपने दृढ़ निश्चय को भूल तप से उठ खड़े हुए
अब ये सृष्टि के निर्माण के अपने फैसले को पीछे छोड़ उस स्त्री के प्यार में मगन हो गए थे जो की अप्सरा मेनका थी
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संतान को जन्म दिया
सच से वंचित ऋषि अब अप्सरा में अपनी अर्धांगिनी देखने लगे ऋषि विश्वामित्र का तप अब टूट तो चुका था लेकिन फिर भी मेनका वापस इंद्रलोक नहीं लौटी क्योंकि ऐसा करने पर ऋषि फिर से तपस्या आरंभ कर सकते थे इसलिए उसने वही कुछ वर्ष बिताने का निर्णय लिया वर्षों साथ रहकर दोनों में प्रेम संबंध उत्पन्न हो चुके थे लेकिन मेनका के दिल में प्यार के साथ एक चिंता भी चल रही थी और वो थी इंद्रलोक की चिंता वह जानती थी कि उसकी अनुपस्थिति में अप्सरा उर्वशी रंभा आदि इंद्रलोक में आनंद उठा रही होगी दिन महीनों में बदलते गए और एक दिन अप्सरा मेनका ने ऋषि विश्वामित्र की एक संतान को जन्म दिया वह एक कन्या थी जिसे जन्म देने के कुछ समय बाद ही एक रात मेनका उड़कर वापस इंद्रलोक चली गई
इन कन्या को बाद में ऋषि विश्वामित्र ने कण्व ऋषि के आश्रम में रात के अंधेरे में छोड़ दिया ऋषि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका की यही पुत्री आगे चलकर शकुंतला के नाम से जानि गई इसी पुत्री का आगे चलकर सम्राट दुष्यंत से प्रेम विवाह हुआ जिनसे उन्हें पुत्र के रुप में भरत की प्राप्ति हुई, इसी पुत्र के नाम से भारत देश का नाम विख्यात हुआ.