WhatsApp Channel
Join Now
Facbook Page
Follow Now
बाल मजदूरी पर रोक केसे लगाएं |
बच्चों के सर्वेक्षणों से दिलचस्प पहलू, Interesting aspects from children's surveys
भारत की जनसंख्या सौ करोड़ से उपर है। इसमें 34.75 प्रतिशत ऐसे बच्चे हैं जिनकी उम्र 14 वर्ष से कम है। शोध सर्वेक्षणों में पाया गया था कि बच्चे महत्वपूर्ण बात निभा रहे हैं। सर्वेक्षणों से दिलचस्प पहलू यह निकाल कर आया कि बच्चा चाहे लड़की हो या लड़का, उसका प्रभाव लगभग एक समान ही है। जैसे-जैसे बच्चे की आयू बढ़ती है उनका प्रभाव भी बढ़ता रहता है। मसलन 6 से 8 साल की वर्ग वाले बच्चों का प्रभाव उन बच्चों से कम थी जो 13 से 15 वर्ष की वर्ग में थे, लेकिन दोनों वर्गों का फर्क कोई विषेश नहीं थी सिर्फ 8 प्रतिशत का अंतर है।
$ads={1}
सर्वेक्षणों से अन्य और भी दिलचस्प तथ्य सामने आए थे।ज्यादा असरदार बच्चे मुंबई, चेन्नई, दिल्ली या कोलकाता जैसे महानगरों के ही नहीं थे । इनमें सर्वेक्षणों में छोटे शहरों के बच्चे भी शामिल हुए थे । सेटेलाइट टेलीविज़न के चलन ने छोटे और बड़े महानगरों के सांस्कृतिक भेद ही मिटा दिए हैं । जो कुछ एक-दो दशकों पहले देखने को मिलता था वो हाल आज नहीं है । आजकल एक साथ सभी शहरों में भूमंडलीकरण और इंटरनेट टीवी मोबाइल क्रांति ने छोटे और बड़े का अंतर ही खत्म कर दिया है। अब सिर्फ बहुत बड़े और मंझोले शहरों के बीच फर्क क्या बचा है।
यह भी पढ़े - बेटे तेरी स्कूल में पिटाई न हो इसलिए तो मैं रात भर तेरे बाप से मार खाती रही । :- मॉ की ममता ही है निराली
बड़े और छोटे शहरों के बीच बढ़ती चारित्रिक एकता के कारण आजकल मुंबई, इंदौर, हैदराबाद, कानपुर, चंडीगढ़ और कोलकाता के बच्चे लगभग एक जैसी जबान बोल रहे हैं और उनकी पसंद-नापसंद भी एक सी होती जा रही है। यही वजह है कि कोलकाता या चेन्नई के बच्चों से भी कई ज्यादा जिद के पक्के बच्चे हैदराबाद और बेंगलूर के भी हैं । कुछ भौगोलिक विशिष्टता वाले शहरों में अभी सांस्कृतिक और पारिवारिक मूल्य उन क्षेत्रों के बड़े शहरों की बनिस्बत कहीं ज्यादा स्पष्ट हैं, जहां क्षेत्रीय विशिष्टता नहीं है। आश्चर्य की बात यह है कि मुंबई जहां का फिल्म उद्योग पूरे देश को प्रभावित करती है वहां के बच्चे कुछ कम जिद्दी हैं और सब चलता है के नजरिये से ग्रस्त हैं।
बाल मजदूरी पर रोक केसे लगाएं in Hindi, How to ban child labour in Hindi
वास्तविकता यह है कि मां-बाप की बातें कम से कम मानी जाती हैं और अपने फैसले खुद ही लेते हैं। अनुमान यह है कि आगे आने वाले वर्षों में बच्चे और ज्यादा असरदार हो जायेंगे, क्योंकि मीडिया एवं इंटरनेट से उनकी जानकारी और सतर्कता दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है और बच्चों को निशाना बना रही हैं। अंग्रेजी कवि विलियम वर्डसवर्थ ने कितना सही कहा था कि ‘बच्चा आदमी का पिता होता है।’ जाहिर है कि यह सब मीडिया जैसे टीवी चैनल, पत्रिकाएं, अखबार और कई उपकरण के कारण से हो रहा है। आयु वर्ग व श्रेणी की दृष्टि से देखें तो बच्चों का फैसला ही ज्यादा रंग लाता है। दिलचस्प बात यह है कि यह प्रभाव सभी सामाजिक व आर्थिक वर्ग के बच्चों में स्पष्ट रूप से पाया जाता है।
बच्चे को शिष्टाचार kaise sikhaen in Hindi, How to learn etiquette to a child
मां-बाप को अपने बच्चे को थोड़ा समझदार होते ही सलीका सिखायें, उन्हें विभिन्न अवसरों पर शिष्टाचार सूचक शब्दों को कहने की रट डलवायें, बच्चों को यह भी सिखायें कि उन्हें अपने से बड़ों का सम्मान करना चाहिए । जब कभी बड़े-बुजुर्गों से वे बात करें, तो सबसे पहले वे उनके लिए आदर सूचक शब्दों का प्रयोग करें। जो बुजुर्ग हैं, उनका वे चरण-स्पर्श करें और आशीर्वाद ले । बच्चों को यह बात भी सिखायें की किसी से बात करते वक्त उनसे धीमें स्वर में बात करनी चाहिए, चाहें वे घर में हों या बाहर । इसी तरह उन्हें शिष्टाचार से संबंधित अन्य बातें सिखायें। अपने बच्चे को आप खुद जो भी जितना भी सिखाएंगे,या शिष्टाचार के बारे में बच्चे को बताएंगे, वह उन्हीं बातों को उतनी ही जल्दी समझेंगे जितने सरल तरीके से आप सिखाएंगे और वो अपने अंदर शिष्टाचार को ढालते चले चाएंगे। एक अच्छा आदमी बनने के लिए अच्छी आदतों, की शिष्टाचार होना बहुत जरूरी होता है,
Why do children work?, बच्चे मजदुरी क्यों करते हैं
सर्वेक्षण के अनुसार किशोरों को अपराधी बनाती सिंगापुर की बदहाली हाल में कराये गये अध्ययन से यह बात सामने आया है कि वर्ष 2002 में जहां 9 से 16 वर्ष की आयु के 388 बच्चे बाल अदालतों में ही दोषी ठहराये गये। वहीं वर्ष 2003 में इनमें 49 प्रतिशत का इजाफा हुआ और यह संख्या 578 तक पहुंच गयी। पारिवारिक अदालत और किशोर न्याय केंद्र की निदेशक एनी ली के हवाले से कहा कि जब कोई परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा होता है तो बच्चे भी महसूस करते हैं। उनके सुभ चिंतक जब उन्हें पैसे नहीं दे पाते तो वे किसी येसे रास्ते को तलाशते हैं, जो उनके लिए गलत है।
किशोर अदालत में अधिकतर मामले चोरी ओर मजदूरी की हैं। वर्ष 2002 में कुल 164 मामले ही थे, वहीं 2003 में बढ़कर 340 हो गये। कई मामलों में बच्चो के परिवार से ही आपराधिक विरासत मिली होती है। देश के प्रत्येक पांच बच्चे में से एक का माता पिता में से कोई एक जेल में सजा काट चुका होता है और दस में से एक भाई-बहन में से कोई एक कानूनी कार्रवाई के चक्कर में फसा होता है।
प्रय पाठको आप को यह लेख 'Why do children work?, बच्चे मजदुरी क्यों करते हैं' बच्चों के सर्वेक्षणों से दिलचस्प पहलू, Interesting aspects from children's surveys केसी लगी कॉमेंट कर के बताये अगर कोई मिस्टेक हैं तो बताये उपडेंट किया जाएगा