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धर्म के उस पार से आस्था का परचम लहराता
बिहार का लोकआस्था का पर्व जो ‘छठ महापर्व’ है, सिर्फ नाम से महापर्व नहीं है। इसकी महानता का अंदाज़ा लगाने के लिए हमें छठ की महान परंपरा को समझना होगा। हमें समझना होगा कि क्यों इस व्रत के लिए लाखों व्रती निर्जला रहकर भी सक्रिय रह पाते हैं। हमें आस्था के उस चरम को समझना होगा जिसकी प्राप्ति के लिए व्रती के साथ-साथ सम्पूर्ण समाज दिवाली से छठ तक एक पैर पर खड़ा दिखाई देता है। आपसी सहयोग की ये भूमिका निभाकर लोग खुद को पुण्य का भागी कैसे बना लेते हैं, हमें समझना होगा। हमें जानना होगा कि इस महान परंपरा में ऐसा क्या खास है जो एक पर्व को उत्सव बना देता है।
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Note- कृपया ध्यान दें, इस लेख का मकसद किस धर्म। या जाती को ठेस पहुंचाना नहीं है
एक ऐसा पर्व है जो धर्मों के बंधन से पूरी तरह स यूँ तो किसी पर्व का धर्म से जोड़ा जाना महज एक दुर्भावना को ही दिखाता है, पर छठ में ये बात स्पष्ट सामने आती है कि कैसे विभिन्न धर्मावलंबी इस पर्व में खुद को सम्मिलित करते हैं। बोजपुरी की मशहूर गायिका, कल्पना पटवारी ने एक वीडियो गीत (मारबो रे सुगवा धनुष से सुगा गिरे मुरुछाय) के जरिये छठपर्व की महिमा दर्शाते इस दृश्की खूबसूरती दिखाने की सफल कोशिश की है। इस वीडियो के सिलसिले में, कल्पना पटवारी ने ये बात पब्लिकली कबूल की है कि कैसे वो अबतक इस महापर्व की महिमा से अनभिज्ञ थीं और इसके बारे में जानना कितना सुखद अनुभव रहा।कई मुस्लिम भी इस पर्व को उसी श्रद्धा से मनाते हैं, दरभंगा बिरौल प्रखंड उछटी गांव में भी यह दृश देखने को मिलता है जहां ब्रसो से कई परिवार महा छठ मनाते हैं
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बांझ की कोई जाति या धर्म नहीं होता है
कल्पना ने अपने अनुभव को यूँ शब्द दिए पिछले साल तक मुझे पता नहीं था कि महात्मा गाँधी का सत्याग्रह आन्दोलन बिहार की पावन धरती चम्पारण से शुरू हुआ था। यह बात पता लगने पर मैं सांगीतिक श्रद्धांजलि के रूप में ‘चम्पारण सत्याग्रह’ नामक ऑडियो-विजुअल तैयार करना जरूरी समझी। महज दो महीने पहले प्रख्यात निर्देशिका और मेरी प्यारी सहेली श्रुति वर्मा से मुझे पता लगा कि बिहार में कई वर्षों से सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्कि मुसलमान भी छठ व्रत करते हैं। यह सुनकर मैं चकित और हैरान रह गयी। बिहार के उन मुस्लिम महिलाओं को चरण स्पर्श करने को जी चाहा और एक स्त्री के रूप में यह सहज एहसास हुआ कि एक बांझ की कोई जाति या धर्म नहीं होता है। ये समाज की दी हुई एक ऐसी असहनीय गाली है जो हर जाति-धर्म की स्त्री को आस्था के अलग-अलग दरवाजों के सामने नतमस्तक होने को मजबूर कर देती है और छठ मैया हर धर्म की स्त्री की व्यथा को सुन भी लेती हैं। बहुतों की गोद भी भर देती हैं। मेरा बिहार सर्वधर्म सम्मेलन का पावन स्थान है, देश के लिए एक अनोखा मिसाल है। मेरा बिहार ही मेरे जीवन का आधार है।
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