भाई-बहन के अगाध प्रेम की अमरगाथा है सामा-चकेवा/भाई बहन का त्यौहार/Saama Chakewa Mathila tradition Festival

भाई बहन के अटूट रिश्ता कायम रखने के लिए रक्षा बंधन और कई अन्य  त्योहार है। उन में से एक है सामा चकेवा सामा-चकेवा भाई-बहन के अगाध प्रेम की अमरगाथा वाली पारंपरिक पर्व है।
Saama Chakewa Mathila
भाई बहन के अटूट रिश्ता कायम रखने के लिए रक्षा बंधन और कई अन्य  त्योहार है। उन में से एक है सामा चकेवा सामा-चकेवा भाई-बहन के अगाध प्रेम की अमरगाथा वाली पारंपरिक पर्व है। यह परंपरा मिथिलांचल के छेत्रो में जोर सोर से मनाया जाता है। प्रेम की मूलगाथा सामा-चकेवा पर्व मे सम्माहित है इनकी पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं।
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भगवान श्री कृष्ण से जुड़े रहने की वजह से इस पर्व की महत्ता अधिक बढ़ जाती है। नेपाल व सम्पूर्ण मिथिलांचल मे लोक पर्व छठ के दूसरे दिन से ही लड़किया मनाने लग जाती है। अपने-अपने सहेलियों के संग प्रतिकात्मक रूप से मिट्टी की सामा,चकेवा,चुगला व पक्षी बनाती है। मूर्ति गढ़ने के दौरान लोक गीत-नाद की रसधारा बहती है। इसके बाद कार्तिक पूर्णिमा की संध्या सभी प्रतिकात्मक मूर्तियों को नदी या तालाब मे विसर्जित कर दी जाती है। विसर्जन के समय महिला व लड़किया सब के सब भावुक हो जाती है, सभी की आंखे डब-डबा जाती है।

एकतरफा प्रेम की मूलगाथा है सामा-चकेवा

सामा-चकेवा पर्व की तथ्यात्मकता व वास्तविकता से पर्व करने वाली लड़किया को भी जानकारी की अभाव बनी रहती है। परंपरा के अनुरूप किसी तरह ढ़ोह रही होती है। पर्व की वास्तविकता व पौराणिक मान्यता ये है कि मथुरा के रचकर महाराज भगवान श्री कृष्ण की बेटी सामा व बेटा सांभ के अमर प्रेम की गाथा की स्मृति है। इस अमरगाथा के एक पात्र कुमार चारुवक्र (चकेवा) जो सामा के प्रेमी व सावंत चूरक (चुगला) भी सामा से एकतरफा प्रेम की मूलगाथा सामा-चकेवा पर्व मे सम्माहित है।

सामा के चरित्रहीनता की भी अफवाह फेला था

पदम पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की बेटी सामा चारुवक्र से लूक-छुप प्रेम करती थी और सामा ने अपने पिता श्री कृष्ण की सहमति से ही चुपके से गांधर्व विवाह कर ली थी। इस विवाह से समाज व परिवार के अन्य लोग अनभिज्ञ थे। सावंत चूरक यानि चुगला ने सामा व चारुवक्र के खिलाफ षड्यंत्र रचकर महाराज भगवान श्री कृष्ण से न सिर्फ शिकायत की बल्कि पूरे राज्य मे सामा के चरित्रहीनता की भी अफवाह फैला दिया। महाराज श्री कृष्ण ने आकूत होकर सामा को दरबार मे हाजिर होने का आदेश दिया। सामा जब दरबार मे हाजिर हुई तो महाराज श्री कृष्ण ने बिना जाने-सुने शापित करते हुए चरित्रहीनता को वंश की कलंक मानते हुए कहा कि तुम आज और अभी से पक्षी बनकर वृन्दावन की जंगलो मे भटकती रहेगी।

कैसे बनी मिथिलांचल की परंपरा सामा-चकेवा

पिता की शाप से जब सामा पक्षी बन गयी तो प्रेमी चारुवक्र ने सामा को नहीं पाकर उसकी तलाश मे निकाल पड़े। बेचारी पक्षी सामा तलाश मे जुटे चारुवक्र के कंधा पर बैठ पूरी घटना से अवगत कराई। सामा को पाने व मनोवांक्षित फल की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु का छह साल तक उपासना किया तो भगवान विष्णु ने खुश होकर चारुवक्र से बोला बोलो क्या वर मांगते हो...सामा से मिलने की वरदान मांगा...  भगवान विष्णु ने कहा की जिस किसी को तुम अपनी कथा सुनावोगे तो तुम भी पक्षी बन जावोगे और सामा से तभी मिल सकते हो। सामा के भाई सांभ सामा व चारुवक्र दोनों से असीम प्यार करता था और उनके प्रेम की असलियत भी पता था, साथ ही पिता की शाप से अपनी बहन व बहनोई की पक्षी योनि से मुक्ति दिलाने के लिए सांभ ने भगवान शिव व विष्णु की आराधना करना शुरू किया तो प्रसन्न होकर भगवान ने उपाय बताते हिए कहा कि जब सम्पूर्ण मिथिलांचल की महिलाये और लड़कीयां कार्तिक मास के छठ के दिन से सामा व चकेवा की पूजा-अर्चना करेगी और कार्तिक पूर्णिमा की रात चूरक यानि चुगला के मुंह मे आग लगाकर जल मे विसर्जित करेगी तभी सामा-चकेवा मनुष्य योनि मे वापस लौट सकेगी। तभी से यह पर्व मिथिलांचल मे परंपरा बन गयी जो आज भी कायम है।

पुराबांचल कोशी मे भी है वृन्दावन की जंगल

वृन्दावन जंगल सहरसा ज़िले के सिमरीब ख्तियारपुर स्थित भी है। आम धारणा है कि यही वह जंगल है ज़हा सामा पक्षी बनकर भटकती थी। कहा जाता है कि इस वृदवान कि कहानी मोरंग से संबन्धित पाण्डुलिपि नेपाल नरेश के अभिलेखागार मे मौजूद है। सामा-चकेवा कि प्रचलित गीत”वृदवान मे आयाग लग्लई केहु नै बुझावई हो, हम्मर भईया, बड़का भईया, दौड़- दौड़ के आवे हो,हाथ मे सोना के लोटा से वृदवान बुझावई हो”। भाई को भावूक करने वाली गीत कि प्रमुख पंक्ति बहन गाती है- अपना ल लिखिया भईया अन-धन लक्ष्मी हो, हमरा ल लिखीय भईया सामा और चकेवा हो। मतलब अपने प्रेमी पति के दीर्घायु की धन से भी अधिक महत्ता मिथिलांचल की बेटियाँ दिया करती है।

Arjun kashyap

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