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यह कुप्रथा सदियों से चली आ रही है। बाल विवाह रोकने में सरकारी व गैर सरकारी प्रयास विफल हो रहे हैं। बाल विवाह निरोधक कानून संविधान के पन्नों में है, लेकिन अषिक्षित समाज बाल विवाह के दुश्परिणाम से अनभिज्ञ है। भारत के अधिकांष गांवों के कम पढे़-लिखे समुदाय में बाल विवाह जैसी कुरीतियां कम होने के बजाय बढ़ रही है। समाज में बेटियों के जन्म पर खुषियां नहीं मनाई जाती बल्कि जन्म देने वाली मां को सास, ससुर, ननद व पति की खोरी-खोटी सुननी पड़ती है। लड़की के जन्म लेते ही माता-पिता को उसकी षादी की चिंता सताने लगती है ।लड़कियां सपने देखते-देखते कुछ बड़ी होती है। सोचती हैं कि बड़े होकर, पढ़-लिख कर गांव-समाज व देष के लिए कुछ करुंगी और माता-पिता का नाम रोषन करुंगी।
मगर उसके सपनों में पंख लगने से पहले ही उसके हाथ पीले कर दिए जाते हैं।
गार्जुन की उपन्यास‘बलचनमा’ की कथाभूमि कोसी और सीमाअंचल से मिलती जुलती है। यहां का जन-जीवन, रीति-रिवाज, खान-पान, रहन-सहन, लोक-व्यवहार, गीत-नाद सबकी झांकी इसमें मिलती है। यहां की किसानी संस्कृति और जाति-व्यवस्था की तस्वीर भी इसमें है। सभी बच्चे गाय, भैंस, बकरी चराने में मां बाप द्वारा ही लगा दिये जाते थे। आज भी इस इलाके की स्थिति कमोबेश ऐसी ही है। कोसी और सीमांचल में गरीब मां-बाप सिंदुर से सोशल सिक्यूरिटी की सोच रखते है। इस इलाके में बाल विवाह का सबसे बड़ा कारण यही रहा है। हांलिका इस इलाके के स्कूली लड़कियों में जागृति आई है। गरीबी और फटेहाली के बीच अब वह कच्ची उम्र में मां नहीं बनना चाहती है ऐसी लड़कियों को राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कानून बनाकर बल दिया है।
इसका असर भी दिखने लगा है। अब सामाज और लड़कियां का स्वर भी इस प्रथा के विरोध में मुखर होने लगा है। जरूरत इस बात की है कि सरकार के इस आंदोलन को गति प्रदान की जाए। बाल विवाह को लेकर तमाम कानूनी प्रावधान के बाद भी इस पर पूरी तरह रोक नहीं लग पाई है। राज्य सरकार द्वारा बाल विवाह एवं दहेज़ उन्मूलन को लेकर शुरू किए गए अभियान का कुछ सकारात्मक असर जरूर दिख रहा है। सीमांचल के जिलों में सिंदुर से सामाजिक सिक्यूरिटी की सोच बाल विवाह का मुख्य कारण माना जाता है। लड़कियों को बोझ समझने की मानसिकता से ग्रसित अभिभावक कम उम्र में ही शादी कर देते हैं। अभिभावकों की सोच रहती है कि भले ही उनकी बेटी दहलीज पर बैठी रहे लेकिन उसकी मांग में सिंदुर रहे। इसका कारण सामाजिक ताने से बचने के लिए सिंदुर को सामाजिक सुरक्षा कवच माना जाना है। समाजशास्त्रियों का मानना है कि कानून सख्त जरूर बनाया गया है। लेकिन सीमांचल के इलाके में सामाजिक ढ़ांचा मजबूत होने के कारण बाल विवाह का पूरी तरह उन्मूलन नहीं हो पाया है।
इसका एक बड़ा कारण दहेज को माना जाता है।
बाल विवाह के अधिकांश मामले ग्रामीण इलाकों में सामने आ रहे हैं। अधिकांशगांवों में प्राथमिक विद्यालय की सुविधा ही है। प्रारंभिक शिक्षा के बाद हाई स्कूल गांव से दूर होने के बड़ी संख्या में लड़कियां ड्रॉप आउट हो जाती हैं। पढ़ाई छोड़ने के बाद अभिभावक उसकी शादी की सोचने लगते हैं। राज्य सरकार द्वारा बाल विवाह एवं दहेज उन्मूलन को लेकर शुरू किए गए अभियान का असर देखने को मिल रहा है। पिछले एक सप्ताह में ऐसे तीन मामले कटिहार में सामने आए हैं। जिसमें लड़कियों ने अपनी शादी का स्वंय विरोध किया। बारसोई में एक लड़की ने पहले अपने माता पिता को मनाने की कोशिश की। अभिभावक के नहीं मानने पर लड़की ने चुपकेे से इसकी जानकारी साक्षरताकर्मियों को दी। पुलिस के पहुंचने पर नाबालिग की शादी रूकी। चार दिन पूर्व रौेतारा में भी इस तरह का मामला सामने आया। गुरुबार को सेमापुर में कम उम्र में शादी करने से एक अल्पसंख्यक समुदाय की लड़की ने इंकार कर दिया।
पुलिस ने मौके पर पहुंच निकाह को रूकवाया।
केस स्टडी एक पांच दिन पूर्व बारसोई थाना क्षेत्र में सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली 13 वर्षीय नाबालिग की शादी उसके अभिभावकों ने यूपी के गोरखपुर निवासी 35 वर्षीय युवक के साथ तय की। वर पक्ष वाले शादी के लिए पहुंच गए। लड़की ने शादी से इंकार कर दिया। अभिभावकों के नहीं मानने पर लड़की ने चुपके से इसकी सूचना साक्षरताकर्मियों को दी। टोला सेवक की पहल पर मामला पुलिस तक पहुंचा।
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