जलियांवाला बाग हत्याकांड पंजाब के अमृतसर स्वर्ण मन्दिर के नजदीक जालियाँवाला बाग में हुआ था। रौलेट एक्ट का विरोध करने सभा में पहुंचे लोगों पर एक अँग्रेज ऑफिसर जनरल डायर ने बिना कोई कारण उस सभा में गोलियाँ चलवा दिया था जिसमें 400 से अधिक व्यक्ति मारे गए और 2000 से अधिक घायल अवस्था थे। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर ऑफिस में 484 शहीदों की लिस्ट है, जबकि जलियांवाला बाग में 388 शहीदों की लिस्ट है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार किया था जिनमें 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और 1 बच्चा था। अनाआधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए थे और 2000 से अधिक घायल हुए थे।
बैसाखी के मौके
13 अप्रैल 1919 बेशाखी के दिन अमृतसर में जलियांवाला बाग में एक सभा लगी थी, उस सभा में कुछ नेता भाषण देने आए थे। पूरे शहर में कर्फ्यू लगी हुई थी, इसके बावजूद भी इस सभा में सैंकड़ों लोग की भीड़ लगा था, जो लोग बैसाखी के मौके पर अपने परिवार बालो के साथ मेला घूमने आए थे सभा की खबर सुनते ही वह लोग भी सभा में शामिल हो गए नेता मैदान में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर चढ़ कर अपना भाषण दे ही रहे थे, उसी समय ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने अपने 90 ब्रिटिश सैनिक के साथ वहां पहुँच गया। सभी के हाथों में भरा हुआ राइफलें था । नेताओं ने सैनिकों को देख कर वहां मौजूद जनता को शांत बैठे रहने और ना घबराए के लिए कहा।
ब्रिटिश शासन के अंत
ब्रिटिश सैनिकों सभा में बिना कोई चेतावनी दिए बेगार निहत्थे लोगों पर गोलियाँ बरसाना शुरु कर दिया। 10 मिनट में 1650 राउंड फायरिंग हुई । किसी को भागने का मोका भी नही मिला जलियांवाला बाग उस समय चारो ओर मकान से घिरा हुआ खाली मैदान था। वहाँ तक आने जाने के लिए मात्र एक संकरा गली था जो ब्रिटिश सैनिकों घेर लिया थाक कई लोग अपनी जान बचाने के लिए वहा मौजूद कुएं में कूद पड़े, देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से भर गया। जलियांवाला बाग जलली नामक आदमी की संपत्ति थी।
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यही घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था। कहा जाता है कि यही घटना ही भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी।
श्रद्धांजलि अर्पित
1997 में महारानी एलिज़ाबेथ ने इस स्मारक पर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी और 2013 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर श्रद्धांजलि देने आया था। विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा की जालियाँवाला बाग हतियाकांड ब्रिटिश इतिहास की एक शर्मनाक घटना थी।