Chaurchan Puja Mantra | मिथिला क्षेत्र की एक अद्भुत धार्मिक परंपरा चौरचन

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यहां हम चौरचन पूजा क्या है?, कब है और इसे कैसे मनाया जाता है? “Chaurchan Puja ke Mantra” और आप इसे अपने घर पर कैसे मान सकते हैं इसकी जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं।

चौरचन पूजा के मंत्र और चौरचन पूजा करने की विधि

चौरचन पूजा करने के मंत्र और विधि
Chaurchan Puja Mantra

Chaurchan Puja 2025: चौरचन पूजा भारतीय संस्कृति की एक अनमोल परंपरा है, जो हमारे धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक विविधता का अनुपम प्रतीक है। यह पूजा खासतौर पर बिहार, नेपाल, और मिथिला क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में प्रचलित है और इसके आयोजन की विधि और महत्व में गहरी धार्मिक भावना छिपी हुई है। चौरचन पूजा के दौरान, भक्त विशेष रूप से अपने घर के आंगन या पूजा स्थल पर चांद की पूजा करते हैं, यह पूजा न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि प्रकृति और  हमारे समाज बीच भाईचारे और एकता का संदेश भी देती है। इसके माध्यम से प्राचीन परंपराओं को संजोने और नवाचार को अपनी संस्कृति से जोड़ने की एक महत्वपूर्ण कड़ी बनती है। 

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चौरचन पूजा से जुड़ी कुछ बातें:

  • चौरचन पूजा भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष चतुर्थी के दिन किया जाती है।
  • यह पूजा महिलाएं अपने पति को कलंक से मुक्त रहने के लिए मानती है।
  • आंगन में रंगोली बनाकर संध्या के समय चंद्रोदय पर पूजा की जाती है।
  • बांस से बनी पूजा डाली में पांच प्रकार के फल व पकवान से सजाया जाता है।
  • घर के पुरुषों द्वारा “मारर भगाने” (रोठ/पुरी तोड़ने) की विधि का विशेष महत्व है।
  • मिट्टी के बर्तन और  केले के पत्ते पर खीर पूरी रखकर पूजा की जाती है।
  • पूजा के बाद घर के पुरुष पुरी को दो भागों में बांटकर ग्रहण करते हैं ।
  • चौरचन पूजा की मान्यता है कि सिर्फ़ चंद्रमा के दर्शन से ही पुण्य मिलता है।
  • यह पर्व सभी जाति-वर्ण एक साथ मिल कर मनाते हैं, इसका भी विशेष महत्व है।

परिचय

चौरचान पूजा प्राचीन समय से ही एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है जो मुख्यतः भारत, के कुछ विशेष क्षेत्रों जैसे बिहार और मिथिला में मनाया जाता है। इसके अलावा यह पर्व नेपाल, म्यांमार मैं भी मनाया जाता हूं जहां बिहार मूल के लोग रहते हैं, इस पूजा की विशिष्टता और सांस्कृतिक का महत्व इसे अन्य पूजा विधियों से भिन्न बनाते हैं। 'चौरचान' शब्द एक विशेष देवता या पूजा की प्रक्रिया को संदर्भित करता है, जिसकी पूजा स्थानीय परंपराओं और विश्वासों के अनुसार की जाती है।


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सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

चौरचान पूजा की जड़ें बिहार के स्थानीय परंपराओं और प्राचीन विश्वासों की गहराई से जुड़ी हुई हैं। यह पूजा मुख्यतः उन क्षेत्रों में प्रचलित है जहां कृषि, समुदायिक जीवन, या लोककथाओं का गहरा प्रभाव है। चौरचान पूजा (Chaurchan Puja) धार्मिक अनुष्ठान के साथ-साथ भारत की सांस्कृतिक एकता और सामाजिक समरसता को भी प्रोत्साहित करता है।

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प्रक्रियाएँ और पूजा की विधि

चौरचान पूजा क्या है और इसे कैसे मनाया जाता है?: चौरचान पूजा के दौरान विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान, स्थानीय परंपरा और सांस्कृतिक प्रक्रियाएँ अपनाई जाती हैं।

Chaurchan Puja photo
Chaurchan Puja photo

  • तैयारी: आंगन में पूजा स्थल को विशेष रंगोली, आकृति से सजाया जाता है। फूल, चावल से बनी हुई (पिठार) की रंगोली और विभिन्न पूजा सामग्री का उपयोग करके सजाया जाता है।
  • आह्वान: मंत्रों और प्रार्थनाओं के माध्यम से देवता का आह्वान करते हुए उनकी उपस्थिति को आमंत्रित किया जाता है। इस चरण में वर्ती गहरी श्रद्धा, भक्ति और ध्यान के साथ पूजा करते हैं।
  • मंत्रोच्चारण: सिंह: प्रसेनमवधिस्सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमार मन्दिस्तव ह्येष स्यामन्तक:।।' मंत्र का जाप किया जाता है. मान्यता है कि इस मंत्र के जाप से चंद्रमा दर्शन करने से झूठे कलंक से मुक्ति मिलती है और मनोवांछित फल प्राप्त होता हैं।
  • अर्पण: विभिन्न प्रकार की पूजा सामग्री जैसे फल, मिठाई, खीर पूरी, पकवान और अन्य अर्पण सामग्री देवता को अर्पित की जाती है। यह अर्पण उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने की भावना को दर्शाता है।
  • मारर भगाने की विधि: अर्पण के बाद घर के पुरुषों द्वारा खीर के ऊपर रखी हुई पूरी को दो भागों में बांटा जाता है जिसे “मारर भगाने की परंपरा” कहते हैं, उसके बाद ही सबसे पहले घर का पुरुष प्रसाद को ग्रहण करते हैं, फिर घर के अन्य सदस्य।
  • प्रसाद वितरण: पूजा के बाद आपस में प्रसाद वितरित किया जाता है, जिसे भक्तों द्वारा अपने धर्म की प्रति श्रद्धा के साथ ग्रहण किया जाता है। यह समुदायिक सहयोग और धर्म के प्रति निष्ठा का प्रतीक माना जाता है।

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समाप्ति और प्रभाव

चौरचान पूजा के समापन के बाद, भक्तगण अपनी पूजा के अनुभव को एक दूसरे के साथ साझा करते हैं और अपने समाज में एकता की भावना को बढ़ावा देते हैं। यह पूजा न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह हमारे स्थानीय सांस्कृतिक की पहचान और पारंपरिक मूल्यों को संरक्षित करने का एक विशेष साधन है।

चौरचान पूजा से संबंधित सवाल 

प्रश्न: चौरचान पूजा का महत्व क्या है?

उत्तर: चौरचान पूजा का महत्व पौराणिक समय से स्थानीय देवताओं और चंद्रमा की पूजा करनेन एक विशेष परंपरा है, इसके अलावा पूजा का महत्व मिथिला के राजा से भी जुड़ा हुआ है, यह क्षेत्रीय परंपराओं, संस्कृति और धार्मिक भावनाओं को सहेजने का एक अनुठा तरीका है। 

प्रश्न: चौरचान पूजा के दौरान कौन-कौन सी रस्में निभाई जाती हैं?

उत्तर: चौरचान पूजा के दौरान कई प्रमुख स्थानीय रस्में निभाई जाती हैं। इनमें पूजा स्थल  की पारंपरिक सजावट, चंद्र देव का आह्वान, मंत्रोच्चारण, अर्पण सामग्री (जैसे खीर, पूरी फल, मिठाई, पकवान आदि) का अर्पण, घर के पुरुषों द्वारा मारर भांगना और अंत में प्रसाद वितरण शामिल हैं।

प्रश्न: चौरचान पूजा कब और कहाँ मनाई जाती है?

उत्तर: चौरचान पूजा भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष चतुर्थी के दिन मनाया जाता है, इसी दिन से गणेश चतुर्दशी भी शुरुआत होती है। आमतौर पर भारत के कुछ विशेष क्षेत्रों जैसे बिहार, मिथिला नेपाल, में मनाई जाती है।

प्रश्न: चौरचन पर्व क्यों मनाया जाता है?

उतर: चौरचन पर्व महिलाओं अपने पति की लंबी आयु ब सदा कलंक से मुक्त रहने के लिए मानती है, और अपने परिवार की सुख शांति के लिए यह व्रत रखती है इसके अलावा यह पूजा स्थानीय संस्कृति परंपरा को संजोग के रखने की एक विशेष तरीका है।

प्रश्न: चौरचान पूजा क्या है और इसे कैसे मनाया जाता है?

उत्तर: चौरचान पूजा बिहार संस्कृत का एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है जो विशेष रूप से बिहार और मिथिला क्षेत्र में मनाया जाता है। इस पूजा का उद्देश्य महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और परिवार की सुख शांति के लिए मानती है। यह पूजा करने के लिए आंगन में रंगोली बनाई जाती है और विभिन्न प्रकार के पकवानों और फल चंद्रमा को अर्पण किया जाता है।

निष्कर्ष

चौरचान पूजा अपने यूनिक कल्चर,  रिवाजों और धार्मिक महत्व के कारण लोगों के बीच विशेष स्थान रखती है। हमारे लिए यह पूजा न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक एकता और सामाजिक समरसता को भी बहुत बढ़ावा देती है। इस प्रकार की पूजा अर्चना भारत के स्थानीय परंपराओं को जीवित रखने और सांस्कृतिक धरोहर को सम्मानित करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। यदि आप या आपका परिवार चौरचन पूजा के कल्चर से जुड़े हुए हैं तो दुनिया में कहीं भी रहे तो अपनी रिवाजों और परंपरा को जरूर अपनाएं (फॉलो) करें धन्यवाद।

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