मिथिला लोक आस्था का एक महान पारंपरिक त्योहार सतुआईन :- spcial on jur_Shital जानीऐ कब ओर क्यु मनाया जाता जूड़ शीतल


जुड़ शीतल या मिथिला दिवस मिथिलाक नव वर्षक उमग के दिन हैं। बैशाख महिना के प्रथम दिन को माना जाता हैं। मैथिला इस दिन करी-बरी आदि पकवान बनाए जाते हैं इसी दिन से एक दिन पहले 13 अप्रिल को सतुवाएन पाबेन मनाया जाता है 

पर्यावरण स्वच्छ रखने की प्रेरणा हैं यह पर्व

जुड़ शीतल बिहार में मनाए जाने बाला एक मात्र ऐसा त्योहार हैं जो आप को होली और मकर संक्रांति की याद ताजा कर देती हैं जहा होली की तरह रंग नहीं होता बल्की मिट्टी पानी यू कहये की कीचड़ होता है यह त्यौहार आप को प्रकृति और पर्यावरण को स्वच्छ रखने और बचाने की प्रेरणा देती हैं, ग्लोबल वार्मिंग से बचना हैं तो मनाओ जुड़-शीतल
विज्ञापन 
$ads={1}

बिहार सरकार द्वारा इस दिन को आधिकारिक मान्यता सन् 2011 मे मिथिला दिवसक के रूप मे दिया गया हैं। इसी दिन बिहार सरकार द्वारा सार्वजनिक छुट्टी रहती हैं

जुड़ शीतल कब और क्यों 

जुर्शीतल और सतुआइन बिहार में मनाई जाने वाली प्रमुख पारंपरिक त्योहारों में से एक है जिसे पूरे बिहार में बड़ी श्रद्धा और सुमन के साथ यह पर्व मनाए जाते हैं जिस तरह मकर संक्रांति धान (चावल) की फसल की कटाई के बाद मनाई जाती हैं उसी तरह जूर शीतल गेहूं मक्का चना अन्य फशलो की कटाई के बाद मनाया जाता हैं यह त्यौहार भारत के कई हिसो में अनेक प्रकार के नामों और परंपरागत से मनाई जाती है जिस में बिहू, वैशाखी, जूरशीतल, विक्रम संवत नया साल,गुड़ी पड़वा, आदी अन्य नाम भी सामिल है हर वर्ष 14 अप्रैल को मनाया जाता हैं।


जुड़ शीतल और सतुवाएन मिथिला क्षेत्र में पूरे निष्ठा से मनाई जाती है धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी दिन पारंपरिक तरीकों से नई फसल के अन्नाज से पकवान ( जो और गुड़ से बनी सत्तू ) का प्रसाद बना कर पूजा की जाती और अपने कुल देवता को शुक्रिया करते हैं इन नई फसल के लिए ,इसी दिन शिव पार्वती की पूजा अर्चना किया जाता है और नई फसल आने की खुशी में माटी पानी का खेल होता है,और प्रकृति धन्यवाद दिया जाता है

सत्तू खाने की परम्परा

लोग प्रातकाल उठकर अपने से कम उम्र के लोग को बासी जल (रात का पानी) से जुड़ाते है (सर पर पानी डाल के थपथपाते है ) कम उम्र के लोग अपने से बड़े उम्र के लोग के पानी से चरण स्पर्श करते है, साथ ही अपने आंगन रास्ते गली पेड़ पौधे खेत खलियान, अपने पूर्वजों के समाधी स्थल इन सभी को पानी डाल कर जुड़ाते है ऐसी मान्यता है की इस दिन बासी जल से जुड़ाने से पूरे वर्ष गर्मी कम लगती हैं, इस दिन बासी भात (रात का चावल) और बड़ी कचरी ( पोकोरी) सत्तू दही चुरा खाने की परम्परा है मन्यता हैं की बासी भात और सत्तू में ओषधिए गुण होता है परंपरा के अनुसार जुड़ शीतल के दिन चुल्हा नहीं जलाया जाता सत्तू का खान पान किया जाता हैं और मटकी सत्तू का दान किया जाता हैं

यह भी पढ़े 👇

Editorial Team

We write Unique Content related to news, tips, facts, Reviews And Much More! Stay updated with us facebook

Post a Comment

Previous Post Next Post