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भारत देश के अधिकांश पर्वों की मान्यताएं यह भी है की पर्व किसी न किसी पौराणिक कथाओं से प्रभावित होते हैं। "लोक आस्था का महान पर्व छठ पूजा" का एक विषय में ऐसा ही है। इसके विषय में पौराणिक मान्यताएं तो ऐसी हैं कि अब से बर्सो पहले रामायण एवं महाभारत काल में ही छठ पूजा का आरम्भ हो चुका था।
सीता माता सर्वप्रथम छठ व्रत और पूजा की थी। इसके बाद से महापर्व की शुरुआत हुई। इसके प्रमाण-स्वरूप आज भी माता सीता के चरण चिह्न मौजूद हैं। गंगा तट पर जहां पर व संपन्न किया था।
अगर आपको भारतीय सांस्कृतिक,शालीनता,परम्परा,श्रृंगार समन्वय की छटा एकसाथ देखनी हो तो अर्घ्य के दिन छठ घाट पर चले जाइए। आप वो देखेंगे जिस से आपका मन को प्रफुल्लित हो जाएगा।
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छठ पूजा कब और क्यू मनाया जाता है
दिनभर के लिए अन्न या जल या अन्य भोजन का त्याग करने का संकल्प व्रत कहलाता है. वैसे तो हर व्रत में नियमों और कड़ी "साधना का पालन" किया जाता है लेकिन "बिहार और झारखंड में विशेष रूप से मनाया जाने वाला छठ व्रत काफी कठिन होता है" दिवाली के ठीक 6 दिन बाद कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य षष्ठी का वर्त करने का विधान है. इस दिन भगवान सूर्य व छठी देवी की पूजा की जाती है.
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इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं. इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते हैं. चार दिनों का यह व्रत दुनिया का सबसे कठिन व्रतों में से एक है. यह व्रत बड़े नियम तथा निष्ठा से किया जाता है. व्रती अपने हाथ से ही सारा काम करती हैं. नहाय-खाय से लेकर सुबह के अर्घ्य तक व्रती पूरे निष्ठा का पालन करती हैं. भगवान सूर्य के लिए 36 घंटों का निर्जला व्रत स्त्रियों इसलिए रखती हैं ताकि उनके सुहाग और बेटे परिवार की रक्षा हो सके. वहीं, भगवान सूर्य धन, धान्य, समृद्धि आदि प्रदान करते हैं.
इस विधि बिद्घान से रखे उपवास
- व्रत का पहला दिन नहाय खाय (अस्नाल कर के खाना) पहला दिन 'नहाय-खाय' के रूप में मनाया जाता है. घर की सफाई के बाद छठ व्रती स्नान कर शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं. घर के सभी सदस्य व्रती के भोजन करने के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं. इस दिन व्रती कद्दू, लौकी, दूधी की सब्जी, चने की दाल, और अरवा चावल का भात खाती हैं.
- व्रत का दूसरा दिन खरना खरना, छठ पूजा का दूसरा दिन होता है. इस दिन खरना की विधि की जाती है. खरना का मतलब है पूरे दिन का उपवास. व्रती व्यक्ति इस दिन जल की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करता. शाम होने पर गन्ने का जूस या गुड़ के चावल या गुड़ की खीर का प्रसाद बना कर बांटा जाता है. प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है.
- व्रत का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य इस दिन शाम का अर्घ्य दिया जाता है. सूर्य षष्ठी को छठ पूजा का तीसरा दिन होता है. आज पूरे दिन के उपवास के बाद शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. तीसरे दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है. प्रसाद के रूप में ठेकुआ और चावल के लड्डू बनाते हैं. शाम को बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है. सभी छठव्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं. सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है.
- व्रत का चौथा दिन उषा अर्घ्य चौथे दिन की सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. व्रती वहीं पुनः इकट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था. अंत में व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर लोक आस्था का महापर्व छठ का समापन करते हैं.
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छठ पूजा समाप्त होने के बाद ही घर के सदस्य प्रसाद व पकवान बड़े आंनद से खाते है,
छठ पूजा समाप्त होने के बाद ही घर के सदस्य प्रसाद व पकवान बड़े आंनद से खाते है,