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भारतीय राजनेता और "बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके जीतन राम मांझी जेडीयू पाटी के 23 वे मुख्यमंत्री रहे है। मांझी बिहार में दलित समुदाय के पहले मुख्यमंत्री बने थे" पूर्ण बहुमत ना मिलने पर इस्तीफ़ा दे दिया था।
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भारतीय राजनेता और "बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके जीतन राम मांझी जेडीयू पाटी के 23 वे मुख्यमंत्री रहे है। मांझी बिहार में दलित समुदाय के पहले मुख्यमंत्री बने थे" पूर्ण बहुमत ना मिलने पर इस्तीफ़ा दे दिया था।विज्ञापन
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जीतन राम मांझी का जन्म 6 अक्टूबर 1944 को बिहार राज्य के गया जिले की खिजरसराय के महकार गाँव में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम रामजीत राम मांझी था जो एक खेतिहर मजदूर थे, मांझी की पत्नी का नाम शान्ति देवी है जिनसे उनके दो पुत्र एवं पाँच पुत्रियां हैं जीतन राम मांझी बचपन से ही जमींदार के खेतों में काम करते थे, लेकिन उन्हें स्कूल जाने की बहुत लालसा लगी रहती थी, वह अपने पिता से अक्सर पढ़ने का जिद करते थे।
जीतन राम मांझी कार्य और शिक्षा - Jitan Ram Manjhi Work & Education
जीतन राम मांझी बचपन से ही जमींदार के खेतों में काम करते थे, लेकिन उन्हें स्कूल जाने की बहुत लालसा लगी रहती थी, वह अपने पिता से अक्सर पढ़ने का जिद करते थे। उनके पिता और एक शिक्षक जो जमींदार के बच्चों को पढ़ाते थे, प्रोत्साहन मिलने पर, वे बिना स्कूल गए। सातवीं कक्षा का शिक्षा प्राप्त कर लिया था फिर वह 1962 में अपनी हाई स्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद, जीतन राम मांझी ने 1966 में गया कॉलेज से इतिहास में स्नातक किया और अपने स्कूली जीवन के दौरान भाकपा के एक सक्रिय सदस्य थे।
महा दलित मुसहर समुदाय से आने वाले जीतन राम मांझी ने 1968 में भारतीए डाक में तार विभाग में लिपिक की नौकरी करना आरम्भ किया, लेकिन 1980 में उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी और कांग्रेस पार्टी के आंदोलन 'आधि रोटी खाएंगे, इंदिरा को बुलाएंगे' में शामिल हो गए।
जीतन राम मांझी राजनीति जीवन - Jitan Ram Manjhi Politics Life
मांझी ने नौकरी छोड़ने के बाद राजनीति में कदम रखा और कांग्रेस पार्टी की आंदोलन में सामिल हो। उसके बाद 1980 में उन्होंने गया जिले के फतेहपुर (आरक्षित) विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और वर्ष 1983 में चंद्रशेखर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में कल्याण राज्य मंत्री बने और बाद की कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रहे।
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1983 से 1985 तक वो बिहार सरकार में उपमंत्री रहे,
इसके बाद वो फिर से 1986 और 1990 विधायक चुने गये,
1985 से 1988 तक और 1998 से 2000 तक राज्यमंत्री रहे।
2005 में बाराचट्टी से बिहार विधान सभा के लिए चुने गये,
2008 में उन्हें केबिनेट मंत्री चुना गया।
मुख्यमंत्री बनने के 10 महीनों के बाद पार्टी ने उनसे नितीश कुमार के लिये पद छोड़ने को कहा। ऐसा न करने के कारण उनको पार्टी से निष्कासित कर दिया गया।
20 फरवरी 2015 को बहुमत साबित न कर पाने के कारण उन्होनें इस्तीफ़ा दे दिया।
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